गुरुवायूर श्री कृष्ण मंदिर
वैकुंठ जहाँ भगवान विष्णु निवास करते है। जहा शांती रूप में मोक्ष की प्राप्ती होती है। ऐसा ही एक वैकुंठ भगवान विष्णू भुलोकपर स्तित है। केरला राज्य के गुरुवायूर शहर के गुरुवायूर श्री कृष्ण मंदीर को भूलोक वैकुंठ कहा जाता है। गुरुवायूर मंदीर के प्रमुख देवता है गुरुवायूर रथ पर जिनकी मूर्ति मंदिर के मध्य भाग में है। इस मूर्ति के चार हाथ है, जीनमें शंख, चक्र, गदा, और कमल का फूल है। भगवान कृष्ण के जन्म के समय उनकी माता-पिता देवकी वसुदेव को भगवान विष्णूने जीस रूप में दर्शन दिये थे, यह मूर्ति उनके उसी रूप को दर्शाती है। भगवान विष्णू के इस रूप तथा इस मूर्तिसे जुडी एक कथा प्रचलित है।
राजा सुतक और उनकी पत्नी राणी क्रिष्णी ने ब्रह्मदेव से पुत्र प्राप्ती की कामना की, तब ब्रहमदेव ने भगवान विष्णू के सहमती से राजा सुतक को श्री विष्णू की एक मूर्ति दी। यह मूर्ति स्वयं भगवान विष्णूने ब्रहमदेव को दि थी।
ऐसा कहा जाता है की श्रीकृष्ण को वो मूर्ति उनके पिता से मिली और उन्होंने उसकी स्थापना उनकी राजधानी द्वारका में की। जहा उस मुर्ति की पूजा की गयी। यह भी माना जाता है की जब द्वारका नगरी समुंदर डूबने वाली थी तब देवगुरु ब्रहस्पती और वायुदेव ने भगवान विष्णू के इस मूर्ति को द्वारका से बचाकर केरला के गुरुवायूर शहर में स्थापित किया था। गुरुवायूर अप्पन यह नाम तीन शब्दों में बना है। जो ही गुरु-वायू-अप्पन। गुरु जो देवगुरु ब्रहस्पती को दर्शाता है।
वायू जो वायूदेव को दर्शाता है, और अप्पन जीसका मल्यालम भाषा में अर्थ है प्रभु गुरुवायूर, अप्पन का अर्थ है प्रभु याने भगवान। विष्णू की वह मूर्ति जो गुरु याने ब्रहस्पती और वायूदेव द्वारा समुंदर में डूबने से बचायी गई गयी थी।
इस मंदीर को दक्षिण भारत की द्वारका भी कहा जाता है। माना जाता है की यह मंदीर करीबन ५००० वर्ष पुराना है। देवगुरु ब्रहस्पती और वायुदेव के अनुरोध करने पर देवताओं के वास्तु का भगवान विश्वकर्मा ने इस मंदीर का निर्माण किया। इस बात का वर्णन महाभारत में ऋषी दत्तात्रय द्वारा राजा परिक्षित के पुत्र जन्मेजय को किया गया है।
इस मंदीर में आदि शंकराचार्य द्वारा निर्धारित पूजा दिनचर्या अनुसार गर्भगृह में विराजमान देवता महा विष्णु की पूजा की जाती है।